तुम विद्यासागर हो
तुम विद्यासागर हो, तुम गुरु ज्ञान दिवाकर हो।
तप संयम धारी हो, गुरु तीर्थ बिहारी हो॥
चंदा-सूरज, तारे, नभ में दिखते सारे।
मुस्कान तुम्हारी पा, बाँटे खुशियाँ न्यारे॥
तुम बीतरागी गुरु हो, सबके हितकारी हो॥।
श्रद्धा-भक्ति तुमसे, जीवन ज्योति रोशन।
कलयुग की अमाँ हुई, गुरु चरणों से रोशन॥
आगम चर्याधर हो, चारित्र शिरोमणि हो॥।
समता रस अनुरागी, मिथ्या प्रपंच त्यागी।
तुम ज्ञान-ध्यान धारी, मद-मत्सर परिहारी॥
गुरु जीवित मंत्र यहाँ, चैतन्य विहारी हो॥
रचयिता – ऐलक : निःशंकसागरजी