“हमने कई बार पूज्य मुनिश्री समयसागर जी से पूछा कि आपकी क्या विद्याधरजी से कभी घर पर बात होती थी, तो समयसागरजी विनयी होकर सिर नीचे किए कहते “नहीं! हम तो छोटे से थे-वो बहुत बड़े थे।”
|| आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ||
जब विद्याधर मुनि हो गए और अष्टगे परिवार सदलगा से हर साल चौका लगाने जाता था, तो एक-डेढ़ माह करीब राजस्थान में ही संघ के पास रुकते थे, तब जब विद्यासागर जी महाराज प्रवचन करते थे, शान्तिनाथ (मुनि समयसागर जी) मोहल्ले के बच्चों के साथ गेम खेला करते थे व अनन्तनाथ लड़कों के साथ साईकिल चलाया करते थे, जब घर जाने का वक्त आता तो बस इतना कहते घर जा रहे हैं, धीरे-धीरे जब एक-दो बार तो घर आना-जाना हुआ, किन्तु जब थोड़े बड़े हुए कुछ समझ आई तो पता चला कि दोनों बड़ी बहनों शान्ता बेन, सुवर्णा बेन ने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत ले लिया। इनके साथ माता-पिता भी यहीं रह रहे हैं, तब दोनों छोटे भाई आचार्यश्री से बोले- “आचार्यश्री !! नमोस्तु! घर जा रहे हैं..”
|| मुनि श्री 108 समयसागर जी महाराज ||
गुरुजी गौर से दोनों को देखकर पूछते हैं- कहाँ जा रहे हो? प्रतिउत्तर में दोनों बोले- घर जा रहे हैं। आचार्य श्री- क्या है घर में? दोनों बोले- खेती-बाड़ी। आचार्यश्री- वही खेती-बाड़ी; जो मैं छोड़ आया, वही खेतीबाड़ी/जमीन जो आज तक किसी की नहीं हुई, मेरी भी नहीं इसलिए मैं छोड़ आया! कब तक उलझोगे अनन्त जन्म बीत गए इस खेतीबाड़ी में, अनन्तकाल हो गया खाते-खाते पर अभी तक पेट नहीं भरा आचार्यश्री अपने भाई को नहीं दो भव्य प्राणियों को बता रहे थे।
दोनों देखते ही रह गए। कहने को कोई शब्द नहीं, दोनों का घर जाने का रिजर्वेशन हो गया था पर जब सुना तो सुन्न हो गए। फिर मल्लप्पा जी ने आचार्यश्री से पूछा आप तो बड़े थे, ज्ञान था, वैराग्य था, पर इनको तो कुछ नहीं है, कैसे आगे बढ़ेंगे तो आचार्यश्री बोले- रुक गए है, यही इनके अन्दर वैराग्य है, क्योंकि चलने वाले व्यक्ति/उछलकूद करने वाले व्यक्ति के अन्दर वैराग्य नहीं है, लेकिन जो एक जगह स्थिर हो गया है उसके अन्दर वैराग्य ठहर गया है।
|| मुनि श्री 108 योगसागर जी महाराज ||
रही बात ज्ञानी नहीं होने कि तो गुरु महाराज कहते हैं जिसकी स्लेट में कुछ लिखा गया हो, उसे पहले हमे मिटाना पड़ता है, ज्ञान भ्रम क्रिया विना उस आदमी के पास ज्ञान भार है, जो पढ़ा-लिखा होकर भी ज्ञान को आचरण में नहीं लाता, चर्या नहीं करता। मुझे तो ऐसे ही आदमी चाहिए जिनकी स्लेट खाली हो क्योंकि गुरु महाराज अपने शिष्य में जो बात डालते जाते हैं वह शिष्य भी उनके अनुसार चलता चला जाता है, तो गुरु का भी कल्याण होता है व शिष्य का भी, व जब शिष्य गुरु से ज्यादा ज्ञानी हो जाए तो भी कहता रहे मुझे तो कुछ भी नहीं आता, कुछ भी नहीं, कुछ भी नहीं…।
हमने देखा है समयसिन्धु गुरुदेव के पास बैठकर आँखे नीचे किए रहते हैं व ऐसे ज्ञान को पीते जैसे कुछ नहीं आता हो, उन्हें क्या नहीं आता यह गृहस्थ नहीं समझ सकते, आज तक समयसागर जी की नजरें कभी ऊँची नहीं हुई वह स्वभाव से झुके हैं, और एक दिन इतने ऊँचे उठेंगे कि सम्पूर्ण आकाश उन्हें अपने में नहीं समा पाएगा और देशकाल कि सीमा को लांगकर समयसार के असीम आकाश में अनन्तकाल तक स्थिर हो जाएंगे।
प्रस्तुत प्रसग पूज्य मुनि आगमसागर जी महाराज के प्रवचनों से लिया है। अगर कोई त्रुटि हो तो उसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।
प्रस्तुति- सौ. रश्मि गंगवाल, इन्दौर