विवकेशील के सांथ संवेदनशील होना जरुरी है
समय पर काम करना संयमी की पहचान
चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की शुक्ल पक्ष में चन्द्रमा का आकार प्रतिदिन परिवर्तित होता है बढ़ता जाता है और पूर्णिमा के दिन उसकी उषमा से समुद्र की लहरों में उछाल आ जाता है ऐसे ही डोंगरगढ़ वासियों के भावों में भगवान के शमोशरण आने से उत्साह, उल्लास नज़र आ रहा है।
आचार्य श्री ने कहा की आगे कब भगवान के समवशरण देखने को मिलेगा पता नहीं परन्तु पिछले 3 दिनों के विहार में भागवान के समवशरण की झलकियाँ देखने को मिली जो की अद्भुत थी। भगवान् की यह प्रतिमा बहुत प्राचीन है और जैसे कुण्डलपुर के भगवान् को आप लोग बड़े बाबा बोलते हो वैसे ही ये चंद्रगिरी के बड़े बाबा हैं।
दोपहर के प्रवचन में आचार्य श्री ने खरगोश और कछुवा के एक दृष्टांत के माध्यम से बताया की खरगोश बहुत तेज, फुर्तीला और विवेकशील था परन्तु उसने समय का सदुपयोग नहीं किया और संवेदनशीलता की कमी और आलस्य के कारण उसकी हार हुई। जबकि कछुवे की चाल धीमी थी परन्तु उसने समय का सदुपयोग किया और आलस्य को त्यागा और अपनी मंजील पर जाकर ही रुका। कछुवे के ऊपर का भाग बहुत मजबूत होता है और उसकी एक खासियत यह है की वह अपनी चारों भुजाओं एवं मुख को उसके अन्दर कर लेता है जिससे उसके ऊपर यदि गाड़ी भी चल जाए तो उसको कोई फर्क नहीं पड़ता है। इसी प्रकार हमें भी अपने लक्ष्य की ओर निरंतर बिना आलस्य किये चलते रहना चाहिये।
दिनांक 19/11/2017 को आचार्य श्री का विहार मुरमुंदा से डोंगरगढ़ के लिए प्रातः 6 बजे हुआ जिसमे देव, शास्त्र और गुरु तीनो के सांथ रत्नों के सामान रथों में प्रतिभास्थली की बचियाँ इंद्र, इन्द्रनियाँ , देव, आदि अति सुन्दर दिखाई दे रहे थे। जो भी व्यक्ति रास्ते में विहार का दृश्य देखता और आचार्यचकित होकर वहीँ रूककर दर्शन करता और अपने मोबाइल के कमरे से इस दृश्य को कैद कर लेता। इस विहार में गाँव के लोगों ने भी उत्साह से भगवान् के समवशरण के दर्शन कर धर्म लाभ लिया जो की काफी अद्भुत था।
आचार्य श्री ससंघ की अगुवानी में जनसैलाब उमड़ पड़ा और लोगों ने अपने घरों के सामने रंगोली बनाई और दीपक जलाकर उनका ह्रदय से स्वागत किया।
यह जानकारी चंद्रगिरि डोंगरगढ़ से निशांत जैन (निशु) ने दी है।