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महावीर के अमृत वचन

महावीर के अमृत वचन

श्रीमती सुशीला पाटनी

आर. के. हाऊस, मदनगंज- किशनगढ

  • संसार के सभी प्राणी समान हैं, कोई भी प्राणी छोटा या बडा नहीं है।
  • सभी प्राणी अपनी आत्मा के स्वरूप को पहचान कर स्वयं भगवान बन सकते हैं।
  • यदि संसार के दुःखों, रोगों, जन्म-मृत्यु, भूख-प्यास आदि से बचना चाहते हों तो अपनी आत्मा को पहचान लो, समस्त दुःखों से बचने का एक ही इलाज है।
  • दूसरों के साथ वह व्यवहार कभी मत करो जो स्वयं को अच्छा ना लगे।
  • जो वस्त्र या श्रृंगार देखने वाले के हृदय को विचलित कर दे, ऐसे वस्त्र श्रृंगार सभ्य लोगों के नहीं हैं, सभ्यता जैनियों की पहचान है।
  • किसी भी प्राणी को मार कर बनाये गये प्रसाधन प्रयोग करने वाले को भी उतना ही पाप लगता है जितना किसी जीव को मारने में।
  • मद्य-मास-मधु(शहद)-पीपल का फल, बड का फल, ऊमर का फल, कठूमर, पाकर(अंजीर), द्विदल(दही-छाछ की कढी, दही बडा आदि) को खाने में असंख्य त्रस जीवों का घात होने से मांस भक्षण का पाप लगता है।
  • संसार के सभी प्राणी मृत्यु से डरते हैं, जैसे- हम स्वयं जीना चाहते हैं वैसे ही संसार के सभी प्राणी जीना चाहते हैं, इसलिये ‘स्वयं जीओ और औरों को जीने दो।‘
  • आत्मा का कभी घात नहीं होता, आत्मा का नाश नहीं होता, आत्मा तो अजर अमर है।
  • दूसरों के दुर्गुणों को ना देख कर उसके सद्गुणों को ग्रहण करने वाला ही सज्जन है।

दूसरों की सेवा करके सभी प्राणी महान बन सकते हैं- कमजोरों की सेवा करना मनुष्य का कर्त्त्व्य है।

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