जयमाला |
हे गुरुवर आपके गुण गाने, अर्पित है जीवन के क्षण-क्षण। अर्चन के सुमन समर्पित हैं, हरषाये जगती के कण-कण॥ कर्नाटक के सदलगा ग्राम में, मुनिवर आपने जन्म लिया। मल्लप्पा पूज्य पिताश्री को, अरुसमय मति कृतकृत्य किया॥ बचपन के इस विद्याधर में, विद्या के सागर उमड़ पड़े। मुनिराज देशभूषणजी से आप, व्रत ब्रह्मचर्य ले निकल पड़े॥ आचार्य ज्ञानसागर ने सन्, अड़सठ में मुनि पद दे डाला। अजमेर नगर में हुआ उदित, मानो रवि तम हरने वाला॥ परिवार आपका सबका सब, जिन पथ पर चलने वाला है। वह भेद ज्ञान की छैनी से, गिरि कर्म काटने वाला है॥ आप स्वयं तीर्थ से पावन हो, आप हो अपने में समयसार। आप स्याद्वाद के प्रस्तोता, वाणी-वीणा के मधुर तार॥ आप कुन्दकुन्द के कुन्दन से, कुन्दन सा जग को कर देने। आप निकल पड़े बस इसलिए, भटके अटकों को पथ देने॥ वह मन्द मधुर मुस्कान सदा, चेहरे पर बिखरी रहती है। वाणी कल्याणी है अनुपम, करुणा के झरने झरते हैं॥ आपमें कैसा सम्मोहन है, यह है कोई जादू-टोना। जो दर्श आपके कर जाता, नहीं चाहे कभी विलग होना॥ इस अल्पउम्र में भी आपने, साहित्य सृजन अति कर डाला। जैन गीत गागर में आपने, मानो सागर भर डाला॥ है शब्द नहीं गुण गाने को, गाना भी मेरा अनजाना। स्वर ताल छंद मैं क्या जानूँ, केवल भक्ति में रम जाना॥ भावों की निर्मल सरिता में, अवगाहन करने आया हूँ। मेरा सारा दु:ख-दर्द हरो, यह अर्घ भेंटने आया हूँ॥ हे तपो मूर्ति! हे आराधक!, हे योगीश्वर! महासन्त! है अरुण कामना देख सके, युग-युग तक आगामी बसंत॥ ॐ ह्रीं श्री १०८ आचार्य विद्यासागर मुनीन्द्राय अनर्घपद-प्राप्तये पूर्णार्घं नि. स्वाहा।||पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत्|| |
सर्वसिद्धिदायक जाप |
ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं अर्हं श्रीवृषभनाथतीर्थंकराय नमः। |
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