आचार्यश्री विद्यासागरजी के पचासवें संयम स्वर्ण महोत्सव की राष्ट्रीय समिति के राजनैतिक एवं प्रशासनिक संयोजक, इंदौर के निर्मलकुमार पाटोदी के आमंत्रण-पत्र को स्वीकार करते हुए देश के जानेमाने वैज्ञानिक व इसरो, बैंगलोर के पूर्व अध्यक्ष कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन, जो कि भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा गठित देश की नौ सदस्यीय कमेटी के मुखिया हैं, छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ पहुंचे। आपके साथ प्रो. टीवी कट्टीमनी, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय ट्राइबल केंद्रीय विश्वविद्यालय अमरकंटक के कुलपति डॉ. विनय चंद्रा बी.के., नई शिक्षा नीति समिति के वरिष्ठ तकनीकी सलाहकार और इसरो मुख्यालय के सह निदेशक डॉ. पी.के. जैन, राजनैतिक व प्रशासनिक संयोजक निर्मलकुमार पाटोदी भी उपस्थित थे।
पद्मविभूषण डॉ. कस्तूरीरंगन ने आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज से पूछा कैसी हो तीस साल के लिए नई शिक्षा नीति? विद्यासागरजी महाराज बोले- ऐसी नीति बनाइए कि शिक्षा उपभोग व विनिमय की वस्तु न हो। 53 मिनट की चर्चा में विद्यासागरजी महाराज ने कहा कि वर्तमान शिक्षा नीति प्रासंगिकता खो चुकी है। अर्थ के द्वारा सब प्राप्त कर सकते हैं, यह भ्रम उत्पन्न हुआ है। वस्तु विनिमय के बदले अर्थ का विनिमय होने लगा है। स्किल डेवलपमेंट कर देने भर से विद्यार्थी सक्षम हो रहा है। यह जरूरी नहीं है। शिक्षा धन से जुड़ गई है। मुख्य धन तो नैतिकता है।
विद्यासागरजी महाराज ने कहा कि मैं भाषा के रूप में अंग्रेजी का विरोध नहीं करता हूं। इस भाषा को विश्व की अन्य भाषाओं के साथ ऐच्छिक रखा जाना चाहिए। शिक्षा का माध्यम मातृभाषाएं ही हों। अंग्रेजों ने भारत की परंपरा के साथ चालाकी करके ‘भारत’ को ‘इंडिया’ बना दिया। जबकि भारत के दो नाम नहीं हो सकते हैं। इसी प्रकार कस्तूरीरंगन नाम को अन्य भाषाओं में बदला नहीं जा सकता है। भारत के साथ संस्कृति और इतिहास जुड़ा है। इंडिया ने हमारे भारत की भारतीयता, जीवन पद्धति, नैतिकता, रहन-सहन और खानपान सब कुछ छीन लिया है।
अब शिक्षा भारतीय गणित, इतिहास, ज्ञान और परिवेश पर आधारित हो। प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषाओं में ही हो तथा एक संपूर्क भाषा भारतीय भाषा ही हो। ऐसा होने से भारत की एकता मजबूत होगी। शिक्षा में शोधार्थी की रूचि किसमें है, इसकी स्वतंत्रता होनी चाहिए। आज मार्गदर्शक के अनुसार शोधार्थी शोध करता है। इससे मौलिकता नहीं उभर पा रही है। शिक्षा रोजगार पैदा करने वाली हो, बेरोजगारी बढ़ाने वाली नहीं हो। शिक्षा कोरी किताब नहीं हो। कौशल से जुड़ी हो।
कस्तूरीरंगन ने बताया कि नई शिक्षा नीति का ड्रॉफ्ट शीघ्र ही तैयार कर लिया जाएगा। यह अगले तीस वर्षों को ध्यान में रखकर बनाई जा रही है। पूर्व शिक्षा नीति छब्बीस साल पहले बनी थी। अब राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों, विश्वविद्यालयों के कुलपतियों और शिक्षाविदों और अन्य धर्मों के प्रतिनिधियों से मिलकर सुझाव लिए जाएंगे।