सुबह का भूला शाम को वापस आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते -आचार्यश्री
चन्द्रगिरि, डोंगरगढ़ में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने एक दृष्टांत के माध्यम से बताया कि एक पिता अपने बेटे को सही राह (धर्म मार्ग) बताता है, परंतु बेटे को पिता की बात कम ही समझ में आती है। वह केवल अपनी इच्छाओं की पूर्ति हेतु प्रयत्न करता है और उसमें सफलता भी प्राप्त करता है।
जब उसके पास उसकी इच्छा अनुरूप सभी साधन और सुविधाएं उपलब्ध हो जाती हैं तो वह बैठा सोचता है कि उसके पास आज सभी चीजें जो वो अपनी जिंदगी में चाहता है, उपलब्ध हैं किंतु मन मान नहीं रहा है। तब उसे अपने पिता की बात याद आती है और वह अगले दिन देश वापस आता है और अपने देश की मिट्टी को माथे से लगाता है और फिर अपने पिता से मिलता है।
पिता उसे देखकर खुश हो जाते हैं और एक पिता अपने बेटे के कार्यानुसार उसके भविष्य को अच्छी तरह जानता है। उन्हें मालूम था कि एक दिन उनका बेटा सही राह (धर्म की राह) पर जरूर आएगा। यहां पर एक वाक्य चरितार्थ होता है कि ‘सुबह का भूला शाम को लौट आए तो उसे भूला नहीं कहते।’
आज चन्द्रगिरि में भी जगदलपुर से आप लोग देव बनकर आए हैं। हमें यह देखकर प्रसन्नता हुई कि आप लोग अपनी मातृभूमि से जुड़े हुए हैं। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मातृभूमि से हमेशा जुड़े रहना चाहिए जिससे कि उसके संस्कार हमेशा बने रहें।
जगदलपुर में पंचकल्याणक की भूमिका डोंगरगांव में मात्र 1 दिन में बनी थी। यह वहां के लोगों का पुण्य है और उनका प्रयास भी सराहनीय है, जो इतना बड़ा कार्य कर रहे हैं। जगदलपुर एक आदिवासी इलाका है। वहां जिन मंदिर होना अपने आप में एक अलग बात है। इससे वहां के आस-पास के लोग भी जुड़ सकेंगे, जैसे कोंडागांव, गीदम आदि। यह एक आदिवासी बहुल क्षेत्र प्रकृति की गोद में है, जो कि अपने आप में एक प्राकृतिक सुन्दरता धारण किए हुए है।
यह जानकारी चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ से निशांत जैन (निशु) ने दी है।