कुंडलपुर। उपदेश के बिना भी विद्या प्राप्त हो सकती है। जिस राह नहीं चलते, वहां रास्ता नहीं, यह धारणा नहीं बनाना चाहिए। कुछ लोग होते हैं, जो रास्ता बनाते जाते हैं महापुरुष आगे चलते जाते हैं और रास्ता बनता जाता है। उपरोक्त उदगार आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने विद्या भवन में अपने साप्ताहिक मंगल प्रवचनों में अभिव्यक्त किए।
आचार्यश्री ने अपने मंगल प्रवचनों में आगे कहा कि समवशरण में सब कुछ प्राप्त हो जाता है। किंतु सम्यग्दर्शन मिले, जरूरी नहीं। बाहरी कारण मिलने के साथ भीतरी कारण मिले यह नियम नहीं होता। अंतरंग निमित्त बहुत महत्वपूर्ण होता है।
चक्रवर्ती भरत के 923 बालक, जिन्होंने कभी नहीं बोला, वे दादा तीर्थंकर से 8 वर्ष पूर्ण होने के बाद कहते हैं कि हे भगवन्, हमें दीक्षा प्रदान करें। साक्षात तीर्थंकर भगवान का निमित्त पाकर बिना उपदेश सुने ही स्वयं दीक्षित हो जाते हैं। यह समवशरण का अतिशय है। वे दीक्षा धारण कर सीधे जंगल चले जाते हैं। उपदेश के बिना समग्यदर्शन भी संभव है। जानकर भी शास्त्र का श्रद्धान नहीं करना शास्त्र का अवर्णवाद है। मोक्ष मार्ग का निरुपरण करते समय स्वयं को संयत कर लेना चाहिए, वरना स्वयं के साथ-साथ मोक्ष मार्ग का भी बिगाड़ हो जाता है। कषाय के रूप अनेक प्रकार के होते हैं जिस तरह सूर्य, चन्द्रमा और दीपक से अलग-अलग रोशनी मिलती है। मुझे मोक्ष मार्ग मिला है तो दूसरों को भी प्राप्त हो जाए, ऐसा वात्सल्य भाव ज्ञानी को होता है। जिस तरह गाय अपने बछड़े के प्रति वात्सल्य भाव रखती है। जो केवल ज्ञान का विषय होता है वह उसे मति ज्ञान और श्रुत ज्ञान का विषय नहीं बना सकते हैं। जिनेन्द्र देव की वाणी जिन वाणी को गौरव के साथ रखना चाहिए। अनादि मिथ्या दृष्टि भी सम्यग्दर्शन भी प्राप्त कर सकता है। एक चोर के लिए सामान्य धर्मी श्रावक प्रेरक बनकर सम्यग्यदर्शन ज्ञान चारित्र की उपलब्धि करा सकता है। मंत्र सिद्धि का सदुपयोग कर एक अंजन चोर भी निरंजन बन जाता है। इस अवसर पर कुंडलपुर क्षेत्र कमेटी के सदस्यगण उपस्थित रहे।