मोक्ष सप्तमी पर विशेष : वन आच्छादित पारसनाथ पर्वत पर एक दिव्य अनुभूति
सम्मेद शिखर, 26 जुलाई। लगभग 4430 फुट की उंचाई पर स्थित झारखंड राज्य के गिरीडीह ज़िले में छोटा नागपुर पठार पर घने जंगलों से आच्छादित पारसनाथ पर्वत पर जैन तीर्थ सम्मेद शिखर… लगता हैं इस पर्वत के पवित्र नीरव माहौल में अहिंसा करूणा और शांति की गूंज प्रतिध्वनित हो रही हैं, एक दिव्य अनुभूति… और इसी पर्वत पर स्थित 25 टोंक (24 तीर्थंकर व 1 गणधर) श्रृंखला के अंतिम पड़ाव पर हैं दिव्य पारसनाथ टोंक या स्वर्णभद्र टोंक।
यहीं जैन धर्म के 23 वें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ ने घोर तप के बाद मोक्ष प्राप्त किया था, जिसे जैन मतावंलबी मोक्ष सप्तमी के रूप में मनाते हैं। जैन धर्म के अनुसार श्रावण शुक्ल सप्तमी के दिन 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के मोक्ष कल्याणक दिवस मनाया जाता है। इस दिन मंदिरों में भगवान पार्श्वनाथ की विशेष पूजा-अर्चना, शांतिधारा कर निर्वाण लाडू चढ़ाने की प्रथा है।
मोक्ष सप्तमी पर कुछ वर्ष पूर्व यहा के दर्शन लाभ कर चुके एक श्रद्धालु बताते हैं- इस बार की परिस्थतियों के चलते आज के दिन हम चाह कर भी वहा के दर्शन का सौभाग्य नही मिल सका लेकिन सम्मेद शिखर के दर्शन की वह दिव्य अनुभूति अब भी महसूस की जा सकती हैं। वे बताते हैं- इस पर्वत पर बने मंदिर श्रंखला के अन्य दिव्य मंदिरों की तरह पारसनाथ टोंक पर मोक्ष सप्तमी पर था अदभुत श्रद्धा वाला माहौल… आस पास घने दरखतों वाले जंगल से घिरे, सरसराती हवा के बीच टोंक के मंदिर के शिखर को छू कर मानो बादल भी वंदन कर रहे थे।
18 किमी के दुरूह मार्ग को पैदल चल कर भक्ति भाव से नाचते ,गातें श्रद्धालु टोंक पर जैसे ही अंतिम पड़ाव पर पहुंचें, रिमझिम फुहारें बरसने लगी, 18 किमी की थकन का एहसास कहीं नहीं, सिर्फ भक्ति भाव। श्रद्धालुओं के टोंक के अंदर प्रवेश करते ही माहौल भगवान पार्श्वनाथ के जयकारों से गूंज उठा। वे बताते हैं सम्मेद शिखर की वंदना और विशेष तौर पर आज के दिन पार्श्वनाथ टोंक के दर्शन मायने एक दिव्य अनुभूति थी, जिसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता हैं।
पारसनाथ पर्वत, जिसे झारखंड के सब से ऊंचे पर्वत होने के नातें झारखंड का हिमालय भी कहा जाता हैं।इस पर्वत पर स्थित ‘श्री सम्मेद शिखरजी’ जैन मतावंलबियों का सबसे महत्वपूर्ण जैन तीर्थ स्थल माना जाता हैं इस पुण्य भूमि से जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों ने मोक्ष या निर्वाण की प्राप्ति की।उन्हीं के मंदिरों के दर्शन करते हुए श्रद्धालु आगे बढते जाते हैं और इस श्रखंला के अंतिम पड़ाव में आती हैं पार्श्वनाथ टोंक, यहीं 23वें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ ने भी घोर तप के बाद निर्वाण प्राप्त किया था, जिसे जैन मतावंलबी मोक्ष सप्तमी के रूप में मनाते हैं। अनेक संतों व मुनियों ने यहाँ मोक्ष प्राप्त किया था। इसलिए यह ‘सिद्धक्षेत्र’ कहलाता है और जैन धर्म में इसे तीर्थराज अर्थात ‘तीर्थों का राजा’ कहा जाता है
सम्मेद शिखर,गिरीडीह स्टेशन से पहाड़ की तलहटी मधुवन तक क्रमशः 14 और १८ मील है पहाड़ की चढ़ाई उतराई तथा यात्रा करीब 18 मील की है। जैन श्रद्धालु पर्वत की वंदना के लिए यहीं से चढ़ाई शुरू करते हैं। पवित्र पर्वत के शिखर तक श्रद्धालु पैदल या कुछ डोली से जाते हैं। जंगलों व पहाड़ों के दुर्गम रास्तों से गुजरते हुए वे नौ किलोमीटर की यात्रा तय कर शिखर पर पहुँचते हैं।
यहाँ भगवान पार्श्वनाथ व चंदा प्रभु के साथ सभी 24 तीर्थंकरों से जुड़े स्थलों के दर्शन के लिए नौ किलोमीटर चलना पड़ता है। इन स्थलों के दर्शन के बाद वापस मधुबन आने के लिए नौ किलोमीटर चलना पड़ता है। पूरी प्रक्रिया में 10 से 12 घंटे का समय लगता है। इसी लिये श्रद्धालु वंदना रात दो तीन बजे शुरू करते हैं और प्रातः तक मंदिरों तक पहुंचना शुरू हो जाता हैं रास्ते में भी श्रृद्धालुओं को दिव्य मंदिरों की श्रृंखलाएँ का दर्शन लाभ मिलता हैं।
साभार : अनुपमा जैन/वीएनआई
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