भय से भयभीत नहीं होना चाहिए- आचार्यश्री
चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ने दोपहर के प्रवचन में कहा की चंद्रगिरि में दो दिवसीय शिविर में बाहर से आए चिकित्सकों द्वारा आप सभी को स्वास्थ्य लाभ मिला। चिकित्सकीय सुविधाओं के बारे में हर संप्रदाय के शास्त्रों, ग्रंथों एवं पुराणों में उल्लेख मिलता है क्योंकि यह एक प्रकार से मानव सेवा का कार्य है जिसे हर संप्रदाय के लोग बहुत अच्छे से इसकी व्यवस्था आदि करते हैं।
एक चिकित्सक का उद्देश्य मानव की जीवन रक्षा और दया धर्म का होता है। चिकित्सक औषधियों, दवाइयों एवं व्यायाम आदि के द्वारा रोगियों के रोगों को दूर करता है और उन्हें स्वस्थ्य लाभ प्रदान करता है। हमें किसी ने बताया की एक मृत व्यक्ति को भी वेंटीलेटर में रखा जाता है जो की पहले ही went हो चूका है (go – went – gone) मतलब जिसकी आयु समाप्त हो चुकी है उसे फिर से जीवित नहीं किया जा सकता है। कुछ लोगों ने तो यह बताया की कुछ दिन पहले भारत की राजधानी दिल्ली के एक बड़े रिहायसी अस्पताल में (जहाँ केवल पैसे वाले ही ईलाज करा सकते हैं) जहां खोका चलता है (खोका में धोखा ही मिलता है) वहाँ एक जीवित व्यक्ति को मृत घोषित कर दिया गया था जो की मानव सेवा के इस कार्य में माफ़ करने योग्य नहीं है। यह ‘प्रज्ञापराध’ में आता है। अब ये ‘प्रज्ञापराध’ क्या होता है? यदि चिकित्सक ‘चरक’ नामक किताब के चार पन्ने ही पढ़ ले तो उन्हें सब समझ आ जायेगा।एक चिकित्सक का कर्त्तव्य होता है की वह निःस्वार्थ भाव से मानव कल्याण के लिए अपनी चिकित्सा सुविधा प्रदान करे जिसमे जीवन रक्षा एवं दया धर्म का होना अनिवार्य है किन्तु ऐसा आज कल देखने को नहीं मिलता आज एक चिकित्सक केवल स्वार्थ के लिए मरीजों को ऐसी दवाइयां दे रहे हैं जिससे उनके स्वस्थ्य में विपरीत प्रभाव पड़ रहा है इसे ही ‘प्रज्ञापराध’ कहा जाता है। यह केवल हमारे भारत में ही हो रहा है जबकि विदेशों में चिकित्सक की एक गलती पर उसकी छुट्टी कर दी जाती है जबकि हमारे यहां उन पर कोई कार्यवाही नहीं की जाती, इसके लिए कठोर दंड का प्रावधान होना आवश्यक है।
हमने सुना है की आज एक चिकित्सक बनने के लिये योग्यता से ज्यादा पैसे की आवश्यकता पड़ती है, बंडल पे बंडल लगाना पड़ता है, तब जाकर चिकित्सक की उपाधि मिलती है। इसी कारण वह चिकित्सक बनने के बाद उन पैसों को मरीजों से वसूलता है जो उसने अपनी उपाधि के लिए खर्च किये हैं । यह एक सेवा का कार्य है जो की व्यापार के रूप में परिवर्तित हो गया है। इस कारण भारत में चिकित्सा का स्तर गिरता जा रहा है जो की विचारणीय है और इसका समाधान होना अत्यंत आवश्यक है।
शास्त्रों में भय के भेद बताये गए हैं जिसमें से एक मृत्यु भय भी होता है, जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु भी निश्चित है। मृत्यु के भय से भयभीत नहीं होना ही मृत्युंजय कहलाता है। संसारी व्यक्ति मृत्यु से डरता है जबकि मोक्ष मार्गी मृत्यु का स्वागत करता है। आज तक कोई नहीं जानता की मृत्यु कैसे आती है, वह कैसी दिखती है फिर भी आप उससे डरते हैं उसका नाम सुनते ही भयभीत हो जाते हैं। बच्चों को आप लोग कैसे डराते हो की वहाँ मत जाना वहाँ बाऊ पकड़ लेगा, बच्चा बुढ़ा होते तक उस बाऊ से डरता रहता है जबकि उसने कभी उसको देखा ही नहीं है जो की वास्तविक में होता ही नहीं है। इसलिए आपको अपने विवेक का इस्तेमाल करना चाहिये और बच्चे को डांटने के साथ – साथ पुचकारना भी चाहिये और ऐसे बाऊ के चक्कर से बच्चों को दूर रखना चाहिये।
चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में दो दिवसीय निः शुल्क चिकित्सा शिविर का आयोजन किया गया जिसमे सभी प्रकार के रोगों का बाहर से आये आयुर्वेदिक, एक्युप्रेसर आदि चिकित्सकों द्वारा इलाज किया गया एवं मरीजों के लिए निःशुल्क भोजन की व्यवस्था की गयी थी। जिसमें डोंगरगढ़ से एवं आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के सैकड़ों लोगों ने अपना इलाज करवाकर स्वास्थ्य लाभ लिया। जैसे बी.पी., शुगर, सिरदर्द, माईग्रेन, खुजली, अस्थमा आदि बीमारियों का इलाज निःशुल्क आयुर्वेदिक औषधि एवं योग प्राणायाम के द्वारा किया गया।
बाहर से आये चिकित्सकों का चंद्रगिरि ट्रस्ट के पदाधिकारियों द्वारा उन्हें तिलक लगाकर एवं श्रीफल, शील्ड आदि भेंट कर उनका आभार व्यक्त किया गया।
यह जानकारी चंद्रगिरि डोंगरगढ़ से निशांत जैन (निशु) ने दी है।