मोल का त्याग करोगे तो अनमोल की प्राप्ति होगी- आचार्यश्री
चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्यश्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की गायें होती हैं, उसके गले में रस्सी डाली जाती है और वह जब जंगल आदि जगह चरने जाती हैं तो वह रस्सी उसके गले में ही रहती है और वह चरने के बाद अपने यथास्थान पर आ जाती हैं किन्तु बछड़े के गले में रस्सी नहीं होती है, वह अपनी माता (गाय) के इर्द – गिर्द ही घूमता रहता है और दौड़कर दूर भी निकल जाये तो गाय की आवाज के संपर्क में रहता है और भागकर वापस अपनी माँ (गाय) के पास आ जाता है।
इसी प्रकार भगवान् से भी हमारा कनेक्शन ऐसा ही होना चाहिये इसके लिए देव, शास्त्र और गुरु के संपर्क में रहकर उनके कनेक्शन से जुड़े रहना चाहिए। जिस प्रकार बल्ब जब तक तार से जुड़ा हुआ रहता है तो वह करंट मिलने से चालू रहता है और प्रकाश देता रहता है यदि तार का कनेक्शन कट जाये तो उसका प्रकाश खत्म हो जाता है। देव, शास्त्र और गुरु से जुड़े रहने से मन शांत और अंतर्मन में दिव्य प्रकाश एवं अलौकिक सुख की प्राप्ति होती है। जिन लोगों के पास अधिक धन आ जाता है उन्हें उसे संरक्षित रखने का भय सताते रहता है वे लोग कहते हैं महाराज आशीर्वाद दो की हमारी धन-सम्पदा संरक्षित रहे।
आचार्यश्री कहते हैं कि ‘मोल का त्याग करोगे को अनमोल की प्राप्ति होगी’ इसलिये समय-समय पर दान देने से परिग्रह का त्याग होता है और अंतर्मन प्रसन्न और अत्यंत सुख की अनुभूति होती है जो कि सहज ही उपलप्ध हो जाती है इसके लिये ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती है।
यह जानकारी चंद्रगिरि डोंगरगढ़ से निशांत जैन (निशु) ने दी है।