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मुनि श्री 108 क्षमासागर जी महाराज

मुनि श्री 108 क्षमासागर जी महाराज

दीप उनका, रौशनी उनकी, मै जल रहा हूँ |
रास्ते उनके, सहारा भी उनका, मै चल रहा हूँ |
प्राण उनके हर साँस उनकी, मै जी रहा हूँ |

* जैन धर्म में मन-शुद्धि और विचार-शुद्धि पर सर्वाधिक जोर दिया गया है|
* जैन धर्म मनुष्य को विकृति से प्रकृति और प्रकृति से संस्कृति की ओर ले जाता है|
* हम दूसरों की रोटी छीनकर खाए यह विकृति है|
* भूख लगने पर अपनी रोटी खाय यह प्रकृति है|
* किन्तु स्वयं भूखे रह कर दूसरों को अपनी रोटी दे देना, यह संस्कृति है|
* जहा तरलता थी – मै डूबता चला गया|
* जहा सरलता थी – मै झुकता चला गया|
* संबंधो ने मुझे जहा से छुआ – मै वही से पिघलता चला गया|
* सोचने को कोई काहे जो सोचे – पर यहाँ तो एक एहसास था – जो कभी हुआ, कभी न हुआ |

– मुनि श्री क्षमा सागर जी महाराज

सुने क्षमासागर जी महाराज के प्रवचन :

1. कर्म सिद्धांत

2. बारह व्रत

3. तत्वार्थ सूत्र

4. श्रम की आराधना

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