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प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज; (डोंगरगढ़) {21 नवंबर 2017}

बिम्ब और प्रतिबिम्ब में अंतर होता है- आचार्यश्री

चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्यश्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की बिम्ब और प्रतिबिम्ब में अंतर होता है। बिम्ब किसी वस्तु का स्वाभाव व उसके गुण आदि होते हैं परन्तु उसका प्रतिबिम्ब अलग – अलग हो सकता है यह देखने वाले की दृष्टि पर निर्भर करता है की वह उस बिम्ब में क्या देखना चाह रहा है। यदि सामने कोई बिम्ब है और उसे दस लोग देख रहे होंगे तो सबके विचार उस प्रतिबिम्ब के प्रति अलग – अलग हो सकते हैं। किसी को कोई चीज अच्छी लगती है तो वही चीज किसी और को बुरी लग सकती है परन्तु इससे उस बिम्ब के स्वाभाव में कोई फर्क नहीं पड़ता है। जैसी आपकी मानसिकता और विचार उस बिम्ब के प्रति होंगे वैसा ही प्रतिबिम्ब आपको परिलक्षित होगा।

यदि आप शान्ति चाहते हो तो दिमाग को कुछ समय के लिए खाली छोड़ दो उसका बिलकुल भी उपयोग मत करो कुछ भी मत सोचो आपको कुछ ही समय में शान्ति की अनुभूति होने लगेगी परन्तु शान्ति को कोई बाज़ार से नहीं खरीद सकता और न ही उसे कोई छू सकता है उसे केवल महसुस किया जा सकता है।

मन + चला = मनचला अर्थात मन चलायमान होता है उसे वश में करना, एकाग्र करना बहुत कठिन काम है। इसके लिये काफी प्रयास की आवश्यकता होती है। यदि आपने अपनी इन्द्रियों को वश में कर लिया तो आप अपने मन को भी अपने वश में (Control में) कर सकते हो जिससे आपको कभी लोभ नहीं होगा और आप हमेशा संतुष्ट और प्रसन्न रह सकते हैं और अपनी मंजिल और लक्ष्य को आसानी से प्राप्त कर सकते हैं।

यह जानकारी चंद्रगिरि डोंगरगढ़ से निशांत जैन (निशु) ने दी है।

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