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मन और इन्द्रियों को वश में करना ही संयम

समय पर काम करना संयमी की पहचान- आचार्यश्री विद्यासागरजी

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चन्द्रगिरि, डोंगरगढ़ में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने कहा कि आप लोग संयम की बात कर रहे हैं, यह सुनकर अच्छा लगा। संयम की परिभाषा है- समय पर काम करना एवं मन और इन्द्रियों को वश में करना। आप लोग संयम दिवस मना रहे हैं तो अपव्यय से बचना चाहिए।

यदि आपके परिवार में 4 सदस्य हैं और आपके पास 4 से ज्यादा गाड़ियां हैं तो यह अपव्यय है। इसकी जगह यदि आप 2 गाड़ियों से ही काम लेते हैं, तो बाकी 2 रखने से क्या फायदा? इसे त्याग दो। यहां इस पांडाल में जितने लोग बैठे हैं, उनमें से कितने लोग हैं, जो परिवार के सदस्यों की संख्या से ज्यादा गाड़ी रखते हैं और आज संयम के दिन वे गाड़ियों का अपव्यय न करने का नियम लेंगे? हाथ उठाइए।

जिस प्रकार एक दुकानदार 1-1 पैसे का हिसाब रखता है कि किसको कितना देना है और किससे कितना लेना है। उसे वह खाते में लिखकर पाई-पाई का हिसाब सुरक्षित रखता है, इसी प्रकार हमारा 1-1 पल कीमती है। उसका हमें सदुपयोग करना चाहिए। हमारे लिए तो संयम दिवस है और दिवस तो 1 दिन का ही होता है, आप लोग इसे 3 दिन मनाएं या सालभर मनाएं, हमारे लिए तो संयम प्रतिपल आजीवन है।

आचार्यश्री ने कहा कि एक बार एक व्यक्ति गुरुजी (आचार्यश्री ज्ञानसागर महाराज) के पास आता है और कहता है कि मेरी एक जिज्ञासा है, कृपा कर आप उसका समाधान कीजिए। वह कहता है कि आपकी उम्र कितनी है, तो गुरुजी उसकी बात का कोई उत्तर नहीं देते। फिर वह व्यक्ति दोबारा पूछता है कि आपकी उम्र कितनी है, इस बार भी गुरुजी कुछ उत्तर नहीं देते। फिर वह व्यक्ति गुरुजी से विनम्र होकर तीसरी बार पूछता है कि आप मेरी जिज्ञासा का समाधान कीजिए और कृपा कर बताइए कि आपकी उम्र कितनी है महाराज? तो गुरुजी कहते हैं कि कुछ समय पहले मैंने सामायिक किया और अभी मैं प्रतिक्रमण कर के आ रहा हूं, बस इतनी ही मेरी उम्र अभी हुई है।

आचार्यश्री कहते हैं कि पूजा समय पर होनी चाहिए और द्रव्य का चावल कभी नीचे नहीं गिराना चाहिए, क्योंकि आप लोग उसे पूजा के निमित्त से लाते हो और चढ़ाने की जगह जमीन पर बिखराते हो फिर उसमें पैर पड़ जाए तो पुण्य की जगह पाप का बंध हो जाएगा। हमें पूजा को समझकर पढ़ना चाहिए और उसे अपने जीवन में भी उतारना चाहिए तभी उसका आनंद आएगा और उसका महत्व भी होगा।

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january, 2025

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