आचार्य श्री चलते फिरते तीर्थ हैं – प्रदीप “आदित्य ” (1-4-2012)
भगवती आराधना – आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज (31-3-2012)
यह भगवती आराधना ग्रन्थ पूज्य आचार्य शिवकोटि (शिवार्थ) नामक महातपस्वी, महामनीषी, सिद्धांत कुशल निर्यापक आचार्य द्वारा हजार वर्ष पहले लिखा गया है जिसकी टिका विस्तार से वर्णन आचार्य अपराजित सूरी ने की है इसमें 40 अधिकार है ! यह सलेखना समाधिमरण मृत्यु महोत्सव को धारण करने में सहायक महा ग्रन्थ है ! दुनिया जहाँ जन्म महोत्सव को मानाने में लगी रहती है वहीँ जैन धर्म के अंतर्गत मृत्यु महोत्सव को मानाने की प्रेरणा देने वाला यह ग्रन्थ भगवती आराधना आत्मा को परमात्मा बनाने की ओर ले जाने वाला मील का पत्थर है ! जिस प्रकार घर में आग लग जाने पर बुझाने का प्रयास फ़ैल हो जाने पर समझदार व्यक्ति अपनी पूरी रकम, जेवर आदि बहुमूल्य वस्तु पहले निकालने का प्रयास करता है उसी प्रकार इस शरीर रूपी मकान में जब असाध्य रोग विपत्ति रूपी आग लग जाती है और उसे बचाने का प्रयास विफल होने पर आत्मा की उन्नति के स्वेक्षा से उत्साह पूर्वक काय व कषाय को धीरे – धीरे कृश किया जाता है ! जीवन रूपी मंदिर में साधना रूपी शिखर का निर्माण हो गया है, उस शिखर में यदि कलश नहीं लगाया तोह मंदिर अपूर्ण है ! यह सलेखना उस कलश के समान है संसार के सब भव्य जीवों को यह सौभाग्य प्राप्त हो यही मंगल कामना आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी के मुखारबिंद से प्रथम बार झर रही अमृत वाणी इस ग्रन्थ के स्वाध्याय वाचन के रूप में हम छत्तीसगढ़ वासियों को मिल रही है परम सौभाग्य है आप सभी लाभ लेवें !
दिनांक 01 अप्रैल 2012 को आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी की ग्रीष्मकालीन वाचना की कलश स्थापना है एवं 04 अप्रैल 2012 को महावीर जयंती का त्यौहार चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में मनाया जाएगा |
आराधना ही मुख्य होती है (26-3-2012)
भगवती आराधना सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ है ! (23-3-2012)
भगवती आराधना ग्रिस्म्कालिन वाचना का आरम्भ भगवती आराधना ग्रन्थ ग्रन्थ से हुआ यह ग्रन्थ प्रथम बार मुनि संघ एवं श्रावको को सर्वश्रेष्ठ आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के श्रीमुख से सुनने को मिलेगा ! इस ग्रन्थ को सुनकर मुनि संघ को भी आनंद का अनुभव हो रहा है ! यह ग्रन्थ आचार्य श्री विद्यासागर जी ने आचार्य श्री ज्ञान सागर जी की संलेखना के समय पढ़ा था ! यह ग्रन्थ बहुत प्राचीन ग्रन्थ है ! आचार्य समन्तभद्र और उनके समकालीन आचार्यों के बराबर मन जाता है !
इसके ऊपर टिका लिखी गयी है ! अणित गति आचार्य के द्वारा उसका नाम भगवती रखा है ! इसके ऊपर एक और टिका है पंडित आशाधर जी ने सागार, अनगार, धर्मामृत लिखी है !
सम्यग दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप को चार आराधना कहते है ! यह विज्योदय टिका है ! जो अपराजित सूरी के द्वारा रचित है ! इसमें संलेखना (समाधी मरण ) का विस्तृत विवरण है ! आचार्य श्री ने कहा की भगवती आराधना सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ है !