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आचार्य श्री विद्यासागर जी (5-10-2011 से 29-11-2011)

आज टिकेट बेचने आयें है (29-11-2011)

डोंगरगढ़ चंद्रगिरी से 23 -11 -2011 को विहार करके 26 -11 -2011 को राजनंदगांव पहुचे आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज 27 मुनिराजो सहित 27 वर्ष बाद पधारे है ! आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने नेमिनाथ भगवान् का दृष्ठांत देते हुए कहा की श्रवण में  शादी नहीं होती है लेकिन नेमिनाथ की हो रही थी, इसलिए मुहुर्त के कारण नहीं हो पायी, उन्होंने अपना कल्याण किया है ! हम मोक्ष मार्ग की टिकेट बेचने आये है ! जिसको खरीदना हो खरीद सकता है ! राजनंदगांव में राज है और गाँव भी है ! आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा की आदर्श दर्पण के माध्यम से हम अपने आप को देख सकते है ! आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा की नेमिनाथ जब जा रहे थे बारात के साथ तोह उनके पैरो में हांथो में मेहेंदी लगी हुई थी ! वह राज मार्ग से आ रहे थे और महाराज मार्ग पर लौट गए ! उनको पशुओ  को देखकर वैराग्य हुआ ! राजनंदगांव के मुलनायक भी नेमिनाथ भगवान् है !


अपने बच्चो में से एक बच्चा हमें दे (17-11-2011)

चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में पर्वत के शिलान्यास एवं पिच्छिका परिवर्तन समारोह को  संबोधित करते हुए कहा की यह चंद्रगिरी वास्तु के हिसाब से बहुत अच्छा है एवं रेल , हवाई , आदि मार्गो की अच्छी सुविधा है . आचार्य श्री ने कहा की धन का दान तो करते है लेकिन चेतन का भी दान करो 4 – 8  बच्चे  है तो एक हमें दे दो जिससे जिनशासन चलता रहे . मुनि, आर्यिका, एलक, छुलक, बन सके जिससे आप लोगो की मांग अनुसार पूर्ति हो सके . चन्द्रगुप्त ने अंतिम समय मुनिपद धारण करके समाधी मरण करके उद्धार किया .

जिन्होंने पिच्छिका  ली है एवं दी है – आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज  की नई पिच्छिका प्रकाश चंदेरिया परिवार ने दी एवं पुरानी पिच्छिका बिरेन्द्र जैन डोंगरगढ़ को मिली इनके परिवार के 8 सदस्यों ने व्रत ग्रहण किये . अन्य 26  मुनिराजो की पिच्छिका बहुत से श्रावको के द्वारा आदान – प्रदान की गयी . पिच्छिका परिवर्तन का संचालन मुनि श्री सौम्य सागर जी महाराज ने किया . इस कार्यक्रम में अशोक पाटनी (आर. के. मार्बल), प्रभात जी मुंबई, मनीष नायक इंदौर, आदि भी पधारे . आचार्य श्री ने कहा की यह बुंदेलखंड का ही विस्तार है . इस कार्यक्रम में दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, महारास्ट्र , छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश आदि पूरे भारत देश से लोग पधारे थे


१२ वर्ष की साधना भी व्यर्थ जाती है (5-10-2011)
चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में धर्म सभा को सम्भोदित  करते हुए दिगाम्बराचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा की लक्ष्य सही होता है तभी सही वस्तु की प्राप्ति होती है | उन्होंने एक  सत्य कहानी बताते हुए कहा   की दो भाई थे जिसमे से एक भाई ने १२ वर्ष स्वर्ण बनाने की सिद्धि में लगाये और दूसरे भाई ने मुनि बनकर तपस्या की |
जब दोनों मिले तोह स्वर्ण बनाने वाले ने अपनी कला बताई तो दूसरे भाई ने स्वर्ण का रसापन लुड़का दिया तो वह भाई नाराज़ हो गया बाद में मुनिराज ने अपनी पसीने की बूंद डाली तो वह चट्टान आदि स्वर्ण की बन गयी तो दूसरे भाई ने कहा की मेरी १२ वर्ष की साधना व्यर्थ गयी और आपकी तपस्या सार्थक रही | आचार्य श्री ने कहा की हमें भी सही मार्ग में सही दिशा में पुरुषार्थ करना चाहिए तभी यह मार्ग सही चलता रहेगा |
यहाँ महारास्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, दिल्ली, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, आदि से
दर्शनार्थी पधारे | आज आचार्य श्री का आहार सप्रेम जैन, अमूल, प्रेसिडेंट चंद्रसेना डोंगरगढ़ वाले  के यहाँ हुआ |

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